Thursday 16 April 2015

साधुओं-मोडडों-महंतों का "छोड़ा हुआ सांड", मेरी निडाना नगरी!


आज से करीब 125 साल पहले अस्थल बोहर के महंत चंदा मांगने मेरे गाँव निडाना नगरी, जिला जींद में आये थे| निडाना नगरी ने एक द्व्वनी भी नहीं दी| महंत जी अपने अहम में तीन दिन रुके रहे गाँव के बाहर कि मुझे भला चंदे-दान से कौन इंकार कर सकता है| तीन दिन दान-चंदा तो क्या जब कोई हाल-चाल भी पूछने नहीं आया उनके पास तो जाते-जाते बोले कि ओ निडाना नगरी के बाशिंदों, इतने बड़े महंत की थोड़ी सी तो इज्जत राख दो, एक रुपया ही दान दे दो, पर निडानिये टस-से-मस नहीं हुए| बोले कि बाबा रोटी-पानी खानी हो तो दस दिन खा, चंदे के नाम पे नहीं मिलेगी दवन्नी भी|

अंत में महंत को खाली हाथ ही यह कह कर अपना डेरा उठाना पड़ा कि "आज से मैं निडाना नगरी को साधुओं के नाम का खुल्ला-सांड छोड़ता हूँ|" वो दिन है और आज का दिन कोई साधु मेरे गाँव में रैन-बसेरा नहीं रूकता| और गलती से रुक जाता है तो शर्तिया लट्ठ खा के जाता है| क्योंकि सुल्फे-गांजे के धूमे लगाने के उलटे कुच्चों से इन्होनें बाज आना होता नहीं और यही गाम को सुहाता नहीं| आगे का तो पता नहीं परन्तु आजतक तो कोई मंदिर भी नहीं है मेरे गाम में, बस हमारे दादा नगर खेड़ा जी और गढ़ गजनी से हमारे पूर्वज देवता दादा मोमराज जी महाराज को गज़नी की बेगम के साथ कैद से निकल आने में मदद करने वाली कुलदेवी दादी चौरदे जी की मढ़ी हैं| - फूल मलिक

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