Friday 5 June 2015

धर्म के नाम पर विधवा-आश्रमों में फेंक दी जाने वाली विधवाओं का पालनहार कौन?

मेरा बस चले तो मैं खाम्खा के दंगों में इस्तेमाल किये जाने वाले नादान जाट युथ के गुस्से का मुख इन विधवा आश्रमों को तोड़ने की ओर मोड़ दूँ| जिनमें हजारों-हजार विधवाएं धर्म के नाम पर ढोंगभरे नारकीय जीवन की वेदना पर रेंगने को पिछले कर्मों के पाप-कर्म भोगने के नाम पर झोंकी गई हैं|

वाराणसी में 38000 विधवाएं धर्म की क्रूरता का शिकार हैं| औसतन 3000 वृन्दावन में रहती हैं| इसके अलावा मथुरा, गोवर्धन, बरसाना, राधाकुंड, गोकुल और अब तो सुना है करनाल में भी विधवा आश्रम खुल गया है| धुर हरिद्वार से ले हुगली तक तो गंगा के किनारे-किनारे लगभग हर शहर खासकर धर्मनगरी में तो खैर विधवा-आश्रमों की पूरी श्रृंखला ही है|

जहाँ एक तरफ जाटों ने सदियों से अपने यहां विधवाओं को पुनर्विवाह की स्वेच्छा दे रखी है, वहीं जब जाटबाहुल्य खापलैंड पर इन विधवा आश्रमों की सुनता हूँ तो खून दिमाग में चढ़ने लगता है| मन उद्वेलित हो उठता है कि अभी जाऊं और जैसे दादावीर हरफूल जाट जुलानी वाले गोहत्थों के बाड़े तुड़वाते थे, ऐसे ही इन विधवाओं के बाड़ों को तोड़, इन सब औरतों को मुक्त करवा, इनके पति के घरों में इनके प्रॉपर्टी राइट्स दिलवा दूँ| और जैसे अंग्रेजों ने सति-प्रथा के खिलाफ कानून बना के रोक लगाई, ऐसे ही सरकार से कानून बनवा दूँ कि जो भी विधवा को आश्रम भेजेगा उसको सीधा कालापानी भेजेंगे|

अंदर कहीं टीस है कि जिन जाटों और खापों की वजह से धर्म की क्रूरतम प्रथाएं जैसे कि नवजन्मा बच्ची को दूध के कड़ाहों में झोंकने की प्रथा (याद रहे यह प्रथा सर्वप्रथम राजस्थान से शुरू हुई थी, 'ना आना लाडो इस देश' टीवी सीरियल में बदनाम करने के मकसद से दिखाई गई जाटलैंड से नहीं), देवदासी, सतीप्रथा और विधवा आश्रम पलायन इनकी लाख कोशिशों के बावजूद भी जाटलैंड अथवा खापलैंड पर उस स्तर तक पैर नहीं पसार पाये, जिस तक कि आज इक्कीसवीं सदी में पहुंच जाने पर भी यह देश के अन्य कोनों में मौजूद हैं; उन्हीं की धरती पर इन चीजों के पैर-पसरने लगे हैं|

जाटों की ऐसी ही मानवधर्म की स्वछंद पालना के समक्ष कई बार वेद-पुराणों की परिभाषानुसार निर्धारित चार वर्णों के अतिरिक्त पांचवा वर्ण कहा गया| यहाँ जोड़ता चलूँ कि वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने आर.एस.एस. द्वारा हरयाणा को अपनी प्रैक्टिकल लैब बनाने पे हरयाणा को land of reckless people (स्वछंद मति) का कहा तो उनका इशारा भी इसी स्वछँदता की ओर था| लेकिन उन्हीं जाटों की नजर तले आज विधवा आश्रम बढ़ते जा रहे हैं और यह नादान उलझे हुए गैर-जरूरी दंगों और आडंबरों में|

मीडिया भले ही जाटों को लाख औरत और दलित विरोधी बता ले, परन्तु अगर कभी किसी दलित की बेटी खापलैंड पर देवदासी नहीं बन पाई तो वो इन्हीं जाटों के इस स्वछंद साये की वजह से| कोई जाटनी तो क्या यहां तक कि खापलैंड की गैर-जाटनी भी विधवा होने पे विधवा आश्रम नहीं जा पाई तो इन्हीं जाटों की मानवधर्म पालना की प्रेरणा और प्रभाव से| काश जाट और इनका युवा अपने इस मानवीय धर्म को पहचान के औरतों के प्रति इस क्रूरतम सोच वाले तबके के चंगुल से निकल के अपनी ऊर्जा को जाटलैंड पर पसरते जा रहे इन विधवा आश्रमों को उखाड़ फेंकने में लगाए|

लेकिन इन मुद्दों पर आज जो उदासीनता पसरी पड़ी है उसी से अंदाजा लगा सकता हूँ कि जाट-समाज की स्वछँदता को दिन-प्रतिदिन घुण लगता जा रहा है| तभी तो छद्मज्ञानी लुटेरे धर्म की आड़ में अपने प्रवचन और पाखंड की दुकानें बढ़ाते ही जा रहे हैं|

कहीं जाट को जाति की बहस में उलझा रखा है तो कहीं वर्ण की तो कहीं धर्म की| और जिसने औरतों के लिए ऐसी क्रूर प्रथा और रूढ़ियाँ बनाई वो समाज में जाति की उंचता और नीचता के सर्टिफिकेट बाँटते हैं| इसलिए इन बातों पे बहस करने से पहले मैं यह सोचता हूँ कि यह जाति-वर्ण-धर्म के प्रति कट्टरता के सर्टिफिकेट ले भी लूँगा तो क्या समाज की विधवा औरतों को विधवा आश्रमों में भेजने के लिए, अथवा नवजन्मा बच्चियों को दूध के कड़ाहों में झोंकने के लिए अथवा दलितों की बेटियों को देवदासियां बनवाने में सहयोग देने के लिए? मुझे लगता है कि इंसान को इंसान की सोच का स्तर और मुद्दा देख के बहसों में उलझना चाहिए|

धर्मभीरु सियार आन चढ़े हैं धरती पे तेरी ओ जाट, सोच-समझ के न्याय करवाना,
पुरखों ने तेरे, नारी को सति-देवदासी-विधवा ना बनने दिया, प्रण निष्ठां से पुगाना|
जाट-देवता यूँ ही ना कहलवाया, ऐसे भीरुओं के मुंह मोड़े तब यह सम्मान कमाया,
बहुत हुआ शरणार्थियों की शर्म में, स्व-संस्कृति भूलने का आत्मघाती अफ़साना||
धार ले धरा के धर्म को अब, तुझे मंदिर-मस्जिद नहीं, मानवता को है बचाना||

जय योद्धेय! - फूल मलिक

Source:
1) वृन्दावन – स्वर्ग की सीढ़ियों पर नरक की परछाइयाँ - www.hastakshep.com/hindi-news/khoj-khabar/2015/06/02/वृन्दावन-स्वर्ग-की-सीढ़ि?
2) वाराणसी में रह रहीं 38 हज़ार विधवाओं की ज़िंदगी में बदलाव की उम्मीद - http://khabar.ndtv.com/video/show/news/widows-of-varanasi-369201

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