Wednesday 12 August 2015

समाज में भाईचारा है पर बहनचारा क्यों नहीं?


(Why its only brotherhood found and no sisterhood?)

टाइटल को हिंदी के साथ अंग्रेजी में इसलिए लिखा क्योंकि भारत के बाहर के विश्व में भी ब्रदरहुड ही है, सिस्टरहुड कहीं नहीं|

अपनी जिंदगी, अनुभव, शिक्षा और समाजशास्त्र से जितना सीखा और समझा उससे यही समझ आया कि एक औरत का दूसरी औरत के प्रति इतना तगड़ा और कट्टर कहा और अनकहा दोनों तरह का कम्पटीशन और जलन होती है कि एक दूसरी को या दूसरी के वंश जेनेटिकली तक ना तो ग्रो होते देख सकती और ना ग्रो होने में मदद कर सकती|

जेनेटिक वर्चस्व (genetic supermacy) की लड़ाई औरतों की सबसे बड़ी कट्टरता है: हमारे समाज में एक कहावत है कि औरत को पोते/पोतियों से दोहते/दोहतियां ज्यादा प्रिय होते हैं| इसकी मिलीझूली वजहें हैं|

एक वजह है उसका अपने खुद के जीन्स के प्रति घमंड व् अटूट लगाव| यानि दादी को पोते और दोहते अथवा पोती और दोहती में चॉइस (choice) दी जावे तो पोते/पोती को कम चाव से इसलिए पालेगी अथवा ध्यान रखेगी क्योंकि वो दूसरी औरत यानी उसकी बहु का जीन्स (jeans) हैं उसका खुद का नहीं; वह भी बावजूद इसके कि उस पोते/पोती में उसके बेटे के भी जीन्स होते हैं| पर जीन्स के मामले में औरत इतनी खुदगर्ज होती है कि बहु बीच में आ गई तो बस, वो पोते/पोती को बहु का होने की वजह से कभी नहीं चाहेगी कि वो उसके खुद के जीन्स यानि उसके बेटे/बेटी से सफल अथवा अधिक तेज के बनें| और अगर खुदा-ना-खास्ता बहु ऐसी आ गई जिससे उसकी पटती नहीं तो बस फिर तो गए काम से, क्या मजाल दादी पोते/पोती को हाथ भी लगा ले तो|

इसलिए घर में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि नई दुल्हन आते ही अपनी पर्सनल स्पेस (personal space) पा सके हालाँकि सामाजिक और पारिवारिक एकता और सहिष्णुता कायम रखने के लिए परिवार के सब सदस्यों में भावनात्मक से ले कारोबारी/आर्थिक रिश्ते बंधे और बने रहने चाहियें|

दूसरी वजह दोहते/दोहती की तरफ लभने की यह होती है क्योंकि वो उसकी खुद की बेटी के जने होते हैं| बेटी कितनी ही ऊत हो पर उसके बच्चों को वो पोते/पोती से बढ़कर स्नेह भी देती है और ध्यान भी रखती है, और वो भी बिना कहे|

जेनेटिक वर्चस्व के अलावा साइकोलॉजिकल फैक्टर्स (psychological factors) तो हर कोई जानता ही है कि क्यों दुनियां में ब्रदरहुड उर्फ़ भाईचारे की टक्कर में सिस्टरहुड उर्फ़ बहनचारा नहीं पनपा| फिर भी दौड़ती हुई नजर से लिख देता हूँ इसकी वजहें भी:

1) औरत के पेट में बात नहीं पचती यह तो हम सब जानते ही हैं, जो कि भाईचारा निभाने का सबसे अहम गुण होता है|

2) औरत को दूसरी औरत का श्रृंगार तक हजम नहीं होता, वो उसमें भी उससे कम्पटीशन और जलन करती है| ....... आदि-आदि।

और औरत की यह सिस्टरहुड स्थापित ना करना, समाज का मेल-डोमिनेंट (male-dominant) बनना और पुरुषों का मेल-डोमिनेन्स कायम रहने का बहुत बड़ा कारण बनता है|

हल्के नोट पर: इसीलिए भारत में महिलावादी संगठन अथवा गोल बिंदी गैंग कितनी ही कोशिशें कर लेवें, जब तक वो सिस्टरहुड यानी बहनचारे को स्थापित नहीं करेंगी, पुरुषचारे ओह नो आई मीन (oh no, i mean) भाईचारे का बाल भी बांका नहीं कर सकती|

विशेष: हालाँकि अपवाद समाज और प्रकृति का नियम रहा है, इसलिए कोई औरत दादी के रोल में भी ऐसा किरदार निभा जाती हैं कि मिशालें कायम कर देती हैं, परन्तु वह मिशालें ऊंट के मुंह में जीरे बराबर ही रहती आई हैं| इसलिए इस पोस्ट को मेजोरिटी बनाम माइनॉरिटी (majority versus minority) के पहलु से ही पढ़ा जाये और समझा जाए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

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