Saturday 1 October 2016

जींद-नाभा-पटियाला की जट्ट सिख रियासतें ही क्यों बदनाम की गई, जबकि ......


1857 की क्रांति में इनके अलावा जयपुर-ग्वालियर-जोधपुर-चित्तोड़ आदि दर्जनों रियासतों ने भी अंग्रेजों का साथ दिया था? क्यों सिर्फ जींद-नाभा-पटियाला को तो हाई स्कूल की किताबों तक में अंग्रेजों के साथी बना के पढ़ाया जाता है|

 जो इतिहास और सिख सिद्धांत जानता होगा वह अच्छे से जानता होगा कि सिखों ने रातों के 12 बजे कितने मुग़ल पीटे थे| महाराज रणजीत सिंह का नाम सुनके तो मुस्लिम, धर्म और वेश तक बदल लिया करते थे| इसलिए सिखों के लिए किसी भी सूरत में मुस्लिमों का साथ तक गंवारा नहीं था, फिर 1857 की क्रांति एक मुग़ल बादशाह के नेतृत्व में लड़ने की बात तो ठहरी ही सपनों की|

और यही वजह थी कि यह जट्ट सिख रियासतें, 1857 की मुग़ल बादशाह के नेतृत्व वाली क्रांति में मुग़लों के विरुद्ध ही खड़ी रही और मुग़लों को हराने हेतु ही अंग्रेजों के साथ रही| क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि जिनको इतनी जद्दोजहद के बाद पंजाब से दूर किया है उनको फिर से कोई वजह मिले यहां वापिस पैर जमाने की|

दूसरी वजह यह भी थी कि सिख पानीपत की तीसरी लड़ाई में यह सुन-देख चुके थे कि महाराजा सूरजमल के लाख कहने पर भी पूना पेशवा इस जिद्द पर अड़े रहे कि अगर पानीपत में हमारे अलायन्स की जीत होती है तो दिल्ली मुग़लों की ही रहेगी| जबकि महाराजा सूरजमल अड़े रहे कि दिल्ली जाटों की थी और जाटों की रहेगी; जो कि बाद में महाराजा सूरजमल के सुपुत्र भारतेंदु महाराज जवाहर सिंह ने अकेले जाट सेना के बलबूते, अहमदशाह अब्दाली के सिपहसालारों की दिल्ली में घेरेबंदी करके उनपर जीत कर दिखा दी थी| इस पूना पेशवाओं और जाटों की बीच, पेशवाओं की जिद्द की वजह से यह अलायन्स सिरे नहीं चढ़ पाने के वाकये ने भी सिखों में 1857 की क्रांति वालों के प्रति विश्वास नहीं आने दिया|

इसलिए जींद-नाभा-पटियाला की रियासतों से लगाव रखने वाले या इन इलाकों में रहने वाली प्रजा को इस बात पर मन मायूस नहीं करना चाहिए कि उनकी रियासतों के बारे क्या पढ़ाया जाता है; अपितु इस पढाये जाने को किताबों से हटवाने बारे अभियान चलाया जाना चाहिए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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